सामान्य रूप से कोई भी कर्मचारी जिंदगी भर मेहनत से काम करता है। अपने बच्चों की शिक्षा, विवाह जैसी अपनी सारी जिम्मेदारियों से निपटने के पश्चात उसे उम्मीद होती है कि रिटायरमेंट के बाद वह अपनी पेंशन के सहारे आराम से दिन काटेगा।
उसकी इस आवश्यकता को महसूस करते हुए एक नौकरीपेशा की तनख्वाह में से कुछ हिस्सा इसीलिए काटकर पेंशन कोष यानी पेंशन फंड में जमा किया जाता है, ताकि वह रिटायरमेंट के पश्चात उसका लाभ उठा सके।
पीएफ पेंशन की बात करें तो वह कर्मचारी की बेसिक सैलरी के हिसाब से निर्धारित होती है। पेंशन निकालने के कुछ नियम भी निर्धारित किए गए हैं। पेंशन मूल रूप से एक ऐसा कोष है, जिसमें किसी कर्मचारी के रोजगार अथवा सर्विस के वर्षों के दौरान पैसा जोड़ा जाता है।
कर्मचारी के रिटायरमेंट के पश्चात कर्मचारी को इस कोष से आवधिक भुगतान किया जाता है। कर्मचारी की मृत्यु के पश्चात उसके पति/पत्नी को पेंशन मिलती है।
पीएफ (EPF) यानी कर्मचारी भविष्य निधि में दो तरह की योजनाओं में पैसा जमा होता है। एक होता है ईपीएफ (EPF) एवं दूसरा ईपीएस (EPS) यानी कर्मचारी पेंशन योजना (employee’s pension scheme)।
कर्मचारी की बेसिक सैलरी का 12% उसकी सैलरी से काटकर पीएफ में जमा किया जाता है। कंपनी का भी इतना ही अंशदान होता है, लेकिन उसका केवल 3.67% हिस्सा ईपीएफ में जमा होता है, जबकि बाकी 8.33% हिस्सा कर्मचारी पेंशन योजना यानी ईपीएस में जमा हो जाता है।
आपके मन में यह सवाल अवश्य उठ रहा होगा कि पेंशन कब बनती है। आपको बता दें कि यदि आपकी नौकरी 10 साल की हो गई है तो आप पेंशन के हकदार हो जाते हैं। 58 वर्ष की उम्र हो जाने पर आपको मासिक पेंशन के रूप में कुछ वेतन मिलने लगता है।
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