“मुझे तैरने दे या फिर बहना सिखा दे, अपनी रजा में अब तू रहना सिखा दे,

“मुझे तैरने दे या फिर बहना सिखा दे,
अपनी रजा में अब तू रहना सिखा दे,

मुझे शिकवा ना हो कभी भी किसी से,
ऐ कुदरत… मुझे सुख और
दुख के पार जीना सिखा दे…

“मेरा मजहब तो ये दो हथेलियाँ बताती है… जुड़े तो “पूजा” खुले तो “दुआ” कहलाती हैं…

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