क्या बेचकर हम खरीदे ” फुर्सत ” ऐ जिंदगी..सब कुछ तो

*क्या बेचकर हम खरीदे*
*” फुर्सत ” ऐ जिंदगी..*

*सब कुछ तो ” गिरवी ” पड़ा है जिम्मेदारी के बाजार में..*
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